कभी ये, कभी वो
शिकार होते लोग
सब जानते हैं
समझते हैं
आज कोई
तो कल
हम भी हो सकते हैं शिकार
दुर्घटना तो आखिर दुर्घटना है
चलो मान लिया
गलती इसकी थी, या उसकी
जाँच का विषय है
पर घण्टों सड़क पर
तड़पती ज़िंदगी
मदद के लिए विनती करती
कभी इशारे से बुलाती
भीड़ से आस की उम्मीद लिए
हर बार आखिरी कोशिश करती
लाश में तब्दील होती ज़िंदगी
किसका दोष है ??
इंसानों का ?
या इंसानों के भेष में घूम रही
मशीनों का ....