Thursday 18 February 2016

पिता


वो छुपाते रहे अपना दर्द
अपनी परेशानियाँ
यहाँ तक कि
अपनी बीमारी भी….

वो सोखते रहे परिवार का दर्द
कभी रिसने नहीं दिया
वो सुनते रहे हमारी शिकायतें
अपनी सफाई दिये बिना ….

वो समेटते रहे
बिखरे हुये पन्ने
हम सबकी ज़िंदगी के …..

हम सब बढ़ते रहे
उनका एहसान माने बिना
उन पर एहसान जताते हुये
वो चुपचाप जीते रहे
क्योंकि वो पेड़ थे
फलदार
छायादार ।

Monday 1 February 2016

दर्द इतना कहाँ से उठता है।

दर्द इतना कहाँ से उठता है।
ये समझ लो की जाँ से उठता है।

सबसे आँखें चुरा रहा था मै
गम मगर अब जुबां से उठता है।

वो असर एक दिन दिखायेगा
शब्द जो भी जुबां से उठता है।

दिल गुनाहों से भर गया सबका
अब भरोसा जहाँ से उठता है।

आग लालच की खा गयी सबको
अब धुआँ हर मकाँ से उठता है।

याद किरदार फिर वही आया 
जो मेरी दास्तां से उठता है।

फिर कोई वस्वसा नहीं होता
न्याय जब नकदखाँ से उठता है।

मसअले प्यार से हुये थे हल
वो हुनर अब जहाँ से उठता है।


आग दिल की तो बुझ गई नादिर
बस धुआँ ही यहाँ से उठता है।

मै अगर टूट भी जाऊँ तो संभल जाऊँगा

नाम अल्लाह का लेकर मै निकल जाऊँगा 
मै जो हालात का मारा हूँसंभल जाऊँगा |


दूर मंज़िल है बहुत राह में दुश्वारी भी
हाथ में हाथ दे वरना मै फिसल जाऊँगा |


बात झूठी हैं तेरी और हैं झूठी कसमें
क्‍यूँ समझता है कि बातों से बहल जाऊँगा |


दोष मुझमें हैं बहुत, प्यार मगर सच्चा है
साथ तेरा जो मिलेगा तो बदल जाऊँगा |


रूठ जाना जो बहाना है फ़क़त इक पल का
तुम अगर प्यार से देखोगी पिघल जाऊँगा |


तेरी बातें तेरी ख़ुशबू हैं अभी तक मुझमें
मै अगर टूट भी जाऊँ तो संभल जाऊँगा ।