Saturday, 11 November 2017

पत्तियां अब तो शजर की जाफरानी हो गईं ...


शिकायत ही बगावत है? नहीं तो ..


कितना सुकून है


छांव



तमाशबीन थे सारे जिधर से निकला था




गज़ल


क्यूँ है तू बीमार मेरे दिल

क्यूँ है तू बीमार मेरे दिल
गम से यूँ मत हार मेरे दिल

तय है इक दिन मौत का आना
इस सच को स्वीकार मेरे दिल

पहले ही से दर्द बहुत हैं
और न ले अब भार मेरे दिल

सुनकर भाषण होश न खोना
ये सब है व्यापार मेरे दिल

कौन यहाँ पर कब बिक जाए
रहना तू हुशियार मेरे दिल

झूठ खड़ा है सीना ताने
सच तो है लाचार मेरे दिल

दिल के कोने में रहने दे
प्यार का हक मत मार मेरे दिल

होगी उसकी भी मजबूरी
पी ले गुस्सा यार मेरे दिल

रिश्तों को तू खूब निभाना
सबसे मिल इक बार मेरे दिल

सच्चाई के साथ चलेंगे
हो जा तू तैयार मेरे दिल