किताबें बोलती हैं
किताबों में बहुत कुछ होता है, और भी बहुत कुछ हो सकता है। किताबों को सम्मान दें, अच्छी बातें लिखें प्यार और भाईचारा लिखें, किताबें नहीं चाहती उनके अंदर नफरतें लिखीं जाएँ । ................... "नादिर अहमद ख़ान"
Saturday, 11 November 2017
क्यूँ है तू बीमार मेरे दिल
क्यूँ है तू बीमार मेरे दिल
गम से यूँ मत हार मेरे दिल
तय है इक दिन मौत का आना
इस सच को स्वीकार मेरे दिल
पहले ही से दर्द बहुत हैं
और न ले अब भार मेरे दिल
सुनकर भाषण होश न खोना
ये सब है व्यापार मेरे दिल
कौन यहाँ पर कब बिक जाए
रहना तू हुशियार मेरे दिल
झूठ खड़ा है सीना ताने
सच तो है लाचार मेरे दिल
दिल के कोने में रहने दे
प्यार का हक मत मार मेरे दिल
होगी उसकी भी मजबूरी
पी ले गुस्सा यार मेरे दिल
रिश्तों को तू खूब निभाना
सबसे मिल इक बार मेरे दिल
सच्चाई के साथ चलेंगे
हो जा तू तैयार मेरे दिल
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