Tuesday 30 October 2012

हमें जमे रहना है ।


मगरमच्छ
शिकार की तलाश में हैं
गिरगिट अपना रंग बदले
दबे पाँव जमे हैं
मकड़ियाँ जाल बुनने में
व्यस्त हैं ।
इन सबके बीच
फूलों को  फर्क नहीं पड़ता
वे पहले की तरह
अपनी ख़ूबसूरती
बिखेर रहे हैं
ख़ुशबू फैला रहे हैं
महकना
उनकी पहचान है
खुशियाँ  फैलाना
पैगाम है
फिर हम क्यों परेशान हैं
अपना धोर्य
खोते जा रहे हैं
अगर कुछ लोग
अपनी आदतें
नहीं छोड़ना चाहते
हम क्यों
अपनी पहचान खोएँ  
उन लोगों मे शामिल हो जाएँ  
जिन्हें हम ख़ुद
पसंद नहीं करते
ये तो सृष्टि का नियम है
सबके सब
अपने कामों में  
व्यस्त हैं
वे हैं, तो हम हैं
हम हैं, क्योंकि वे हैं
और हमें तो
जमे रहना है
मज़बूती के साथ
अधिक दृढ़ता से
ताकि वे
हावी न हो सकें
कमज़ोर पड़ जायें
बुराई डरती रहे
मिसालें कायम रहें
संतुलन बना रहे
धोर्य बरकरार रहे
बुराई हावी न हो सके
अच्छाई पर
सच की जीत जरूरी है
और हमें
जमें रहना है
और अधिक
दृढ़ता के साथ ।

जिम्मेदारियाँ (हाईकु)


जिम्मेदारियाँ
हो राज या समाज
धर्म निभाना

जिम्मेदारियाँ
खुद का आंकलन
जाँच परख

जिम्मेदारियाँ
जब भी हो चुनाव
खरा ही लेना

जिम्मेदारियाँ
धरती या आकाश
प्यार ही बाँटे

Thursday 25 October 2012

मै शर्मिंदा हूँ



मनाना तो चाहता हूँ ईद

मगर बंद है
मेरे दिल के दरवाज़े
और ईद का चाँद
मुझे दिखाई नहीं पड़ता

दिवाली,दशहरा कैसे मनाऊँ
मेरे अन्दर का रावण
नहीं मरता मुझसे
और न ही
मेरे मन का अँधेरा छंटता है

बापू की जयंती है
पर मै
उनसे भी शर्मिंदा हूँ
मेरे अन्दर हिंसा है
लालच है
मै नहीं मिला पाता
अपनी नज़रें
उनकी तस्वीर से

जिन शहीदों ने

जान तक दे दी
हमारी आज़ादी के लिए
हमने उनका सब कुछ लूट लिया
और लूटा भी दिया

लोगों की
उदास बेचैन और लाचार आँखें
मुझे घूरती है
मै सबसे नज़रें चुराता हूँ
अपने आप को
कमरे में बंद कर लेना चाहता  हूँ
मुझमें हिम्मत नहीं
उनसे आँखें मिलने की
न ही हिम्मत है
ईद, दिवाली या जयंती मनाने की
क्योंकि मै शर्मिंदा हूँ

मैंने आज़ादी के अर्थ
ईद के पैगाम
और दिवाली के महत्व को
समझा ही नहीं ।

Thursday 18 October 2012

क्षणिकाएँ


मै खुश हूँ 

तुम बार-बार
मुझसे
झूठ बोलते रहे
बोलते रहे
मै बारबार
तुम्हारी बात सुनता रहा
मानता रहा
तुम खुश हो
बार-बार बेवकूफ
मुझे  बना पाते हो
मै खुश हूँ 
क्योंकि
तुम खुश हो ।


 थोड़ा सा पानी


आप ज़रूर पीयें
आर.ओ. पानी
आपका स्वस्थ रहना
जरूरी है  
पर हमारे लिए भी छोड़ दें
थोड़ा सा पानी
हमारे जीने के लिए
जरूरी है
गाँवों की नदियों में
पानी का बचा रहना 

           (आर.ओ.-रिवर्स ऑस्मोसिस वाटर प्यूरिफायर)


क्या हुआ

क्या हुआ
अगर तुम्हें
तुम्हारे कुत्ते ने काट लिया
तुम्हें तो ख़ुश होना चाहिए
वह भी सीख गया है
तुम्हारी तरह
तुम्हारा व्यवहार
तुम्हारा अपनापन |



Tuesday 16 October 2012

हाईकु


तुमने ओढ़ी
आसुओं की चादर
समाज खुश

ज़ख़्मों को धोना
मलहम लगाना
चलते जाना

सबकी खुशी
आँसुओं पे न जाना
फर्ज़ निभाना

पिया घर जा
आँसुओं को न देख
बावरे नैन

खुश रहना
कभी याद न आना
साथ निभाना 


सब खामोश
आँसू बहें हज़ार
सफर जारी 

Monday 15 October 2012

नदियाँ


पहाड़ों से निकलती
इठलाती, बलखाती
झरनों में गिरती
मैदानों में मचलती
नदियाँ
शहरों तक आते आते
बन जाती हैं
गंदा नाला

पहाड़ों से निकलती
इठलाती,बलखाती
झरनों में गिरती
मैदानों में मचलती
नदियाँ का बूँद-बूँद
निचोड़ लिया जाता है
मानो वो नदियाँ नहीं
जागीर हो किसी की

पहाड़ों से निकलती
इठलाती, बलखाती
झरनों में गिरती
मैदानों में मचलती
नदियाँ  को
बांध दिया जाता है
बाँधों की जंजीरों से

पहाड़ों से निकलती
इठलाती,बलखाती
झरनों में गिरती
मैदानों में मचलती
नदियाँ
शहरों की बढ़ती ज़रूरतों को
पूरा करते-करते
सुप्त हो गई हैं
जिंदगी और मौत
की लड़ाई
लड़ रही हैं
मगर अंतिम साँसों तक
करती रहेंगी
सबकी ज़रूरतें पूरी
और सूखने के बाद भी
रेत और उर्वरा देकर जाएँगी
हमारे कल के लिए ।

Wednesday 10 October 2012

गिरवी


मैं अपने हाथ
गिरवी रख आया हूँ
चंद सिक्कों के बदले
ख़ुद का
सौदा कर आया हूँ

मैं जानता हूँ
कुछ दिनों तक
पत्नी
नहीं देगी ताने
माँ
कुछ और दिन
जी लेगी
खिलौने बच्चों के लिए
कुछ दिन तक
ख़ुशी का सामान बनेंगे

सब ख़ुश हैं
और मैं
अपने ही हाथों से
लाचार हूँ
अपाहिज हो गया हूँ ।

Sunday 7 October 2012

आम सभा


  (एक)

श श् श् श्...
सच बोलना मना है!
सरकारें  नशे में हैं  
खलल की सज़ा
जेल की सलाखें
या फिर
सजाये मौत
विकल्प आपका ।

    (दो)

नेता जी की आम-सभा
कृपया यहाँ
सवाल न पूछें
सिर्फ
उनकी सुनें
कुछ पूछने की गलती
न करें
नेता जी सत्ता के नशे में हैं
सवाल पूछना निषेध है ।

यादें

मैं महाजन नहीं
हिसाब किताब रखूँ
प्यार में
क्या पाया
क्या खोया

जब कभी ख़ुदको
बेबस-असहाय
महसूस किया
ख़ुद पर भरोसा नहीं रहा
तुम्हारी ही यादें
हिम्मत बनकर खड़ी रहीं
मुझे टूटने नहीं दिया

वो तुम्हारी ही यादें हैं
जो धूप में
पेड़ की ठंडी छाँव
और सर्दी में
गरम लिहाफ़
बन जाती हैं
हर परेशानी में
ढाल बनकर
खड़ी हो जाती हैं
आँसुओं के गिरने से पहले
उन्हें थाम लेती हैं

वो तुम्हारी ही  यादें हैं
जो मौके-बेमौके
वजह-बेवजह गुदगुदाती हैं
हँसा के निकल जाती हैं
लोग सवाल करते हैं
तुम बेवजह कैसे हंस लेते हो

तुम्हारी यादें मुस्कुराती हैं
और पूछती हैं
जनाब कहाँ खो गए ?

Wednesday 3 October 2012

सच के साथ

तुम्हारी आवाज़
न हमें डरा सकती है
और न ही
हटा सकती है हमें
हमारे रास्ते से

ये आवाज़
सच की आवाज़ है
आम आदमी की आवाज़
जो धीमी ज़रुर है
पर दूर तलक जाती है
ये कान के पर्दे नहीं फाड़ती
बल्कि उसमें
मीठा रस घोल देती है

ये आवाज़
आँखों में सबके
ख़ूबसूरत सपनें जगाती है
ये आवाज़
आज के बच्चों को
कल के लिए
रास्ता दिखाती है
उन्हें जीना सिखाती है
ये आवाज़
झूठे खोखले वायदे नहीं देती
हौंसलें देती है

ये आवाज़
डरा देती है
बौख़लाहट पैदा कर देती है
बेईमानों और मक्कारों के दिल में
हलचल मचा देती है
जिन्होंने ज़िंदगी का मक़सद
लूट-खसोट समझ रखा है
जिन्हें लोगों की चीख़
सुनाई  नहीं देती
ये आवाज़
उन्हें आइना दिखाती है
सच का आइना
और वे काँपने लगते हैं
उल-ज़लूल हरकतें करने लगते हैं
मानो
मानसिक संतुलन खो बैठे हैं

इस आवाज़ के लिए
उन तमाम लोगों को मेरा सलाम
जिन्होंने
हिम्मत दिखाई
बावजूद इसके
कि शाम-दाम, दंड-भेद से
डराया और धमकाया भी गया
पर इतिहास गवाह है
सच पर चलने वाले लोग
डरते नहीं
क्योंकि सच के साथ
ख़ुदा भी खड़ा है  ।