दर्द इतना कहाँ से उठता है।
ये समझ लो की जाँ से उठता है।
ये समझ लो की जाँ से उठता है।
सबसे आँखें चुरा रहा था मै
गम मगर अब जुबां से उठता है।
गम मगर अब जुबां से उठता है।
वो असर एक दिन दिखायेगा
शब्द जो भी जुबां से उठता है।
शब्द जो भी जुबां से उठता है।
दिल गुनाहों से भर गया सबका
अब भरोसा जहाँ से उठता है।
अब भरोसा जहाँ से उठता है।
आग लालच की खा गयी सबको
अब धुआँ हर मकाँ से उठता है।
अब धुआँ हर मकाँ से उठता है।
याद किरदार फिर वही आया
जो मेरी दास्तां से उठता है।
जो मेरी दास्तां से उठता है।
फिर कोई वस्वसा नहीं होता
न्याय जब नकदखाँ से उठता है।
न्याय जब नकदखाँ से उठता है।
मसअले प्यार से हुये थे
हल
वो हुनर अब जहाँ से उठता
है।
आग दिल की तो बुझ गई नादिर
बस धुआँ ही यहाँ से उठता है।
बस धुआँ ही यहाँ से उठता है।
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