मैं जब भी डर जाता
आपके पास चला आता
आप समझ जाते
मुझे दुलारने लगते
निडर लोगों के किस्से बताते
जब भी मुझे
चीज़ें चाहिये होतीं
मैं आपके काम करने लगता
आप भाँप जाते
और कोशिश करते
ख़्वाहिश पूरी करने की
जब मुझसे गलती हो जाती
मैं रोने लगता
आप समझ जाते
विषय बदलकर
गलती से सबक लेने की
नसीहत देते
आज पिता बनने के बाद
अपने बच्चों
के लिए
चाहकर भी
आप जैसा नहीं बन सका
बनता भी तो कैसे
आपसे बराबरी
कोई कर ही नहीं सकता
इस बात की ख़ुशी है मुझे
पर मैं
आपके काम नहीं आया
जैसा आप आये
इस बात का
अफ़सोस है मुझे ।
बहुत भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteशुक्रिया संगीता जी .
ReplyDeleteआभार.......