२१२ २१२ २१२ २१२
फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन
गज़ल (एक)
ज़िंदगी से मेरी, उनका जाना हुआ
अपनी मजबूरियों का बहाना हुआ
अपनी मजबूरियों का बहाना हुआ
राह जब से हमारी जुदा हो गई
बीच अपनों के रहकर बेगाना हुआ
बीच अपनों के रहकर बेगाना हुआ
बढ़ गयी हैं मेरी अब परेशानियाँ
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ
है कठिन दौर ये, ऐ खुदा सब्र दे
नेकियों का चलन अब पुराना हुआ
नेकियों का चलन अब पुराना हुआ
जाने अल्लाह को क्या है मंज़ूर अब
फिर तुम्हारी गली मेरा जाना हुआ
याद में क्यों पुरानी भटकता है
दिल
उनसे बिछड़े हुये तो जमाना हुआ
उनसे बिछड़े हुये तो जमाना हुआ
गज़ल (दो)
आपका घर मेरे, आना जाना हुआ
रौनकें बढ़ गईं दिल दीवाना हुआ
रौनकें बढ़ गईं दिल दीवाना हुआ
लौट कर आ गई है मेरी हर ख़ुशी
जिस घड़ी आपका लौट आना हुआ
जिस घड़ी आपका लौट आना हुआ
मिल गई है मुझे इक नई राह अब
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ
आदमी अपनी हद पार करता है जब
उसका गर्दिश में ही फिर ठिकाना हुआ
उसका गर्दिश में ही फिर ठिकाना हुआ
ढूँढना नेकियाँ जिनकी फ़ितरत में
है
उनका हँसना हँसाना खजाना हुआ
उनका हँसना हँसाना खजाना हुआ
दुश्मनों से मुझे कुछ शिकायत
नहीं
अब तो मै दोस्तों का निशाना हुआ
अब तो मै दोस्तों का निशाना हुआ
(यह गज़ल तरही मिसरा - "जब से गैरों के घर आना जाना हुआ"
पर आधारित है ।)
लाजवाब है गज़ल ... उम्दा शेरों का संकलन ...
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आदरणीय दिगंबर जी ।
Deleteमर्मस्पर्शी रचना
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