Wednesday, 8 January 2014

गज़लें

२१२ २१२ २१२ २१२
फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन

      गज़ल (एक)

ज़िंदगी से मेरी, उनका जाना हुआ
अपनी मजबूरियों का बहाना हुआ

राह जब से हमारी जुदा हो गई
बीच अपनों के रहकर बेगाना हुआ

बढ़ गयी हैं मेरी अब परेशानियाँ
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

है कठिन दौर ये, ऐ खुदा सब्र दे
नेकियों का चलन अब पुराना हुआ

जाने अल्लाह को क्या है मंज़ूर अब
फिर तुम्हारी गली मेरा जाना हुआ

याद में क्यों पुरानी भटकता है दिल
उनसे बिछड़े हुये तो जमाना हुआ

गज़ल (दो)

आपका घर मेरे, आना जाना हुआ
रौनकें बढ़ गईं दिल दीवाना हुआ

लौट कर आ गई है मेरी हर ख़ुशी
जिस घड़ी आपका लौट आना हुआ

मिल गई है मुझे इक नई राह अब
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

आदमी अपनी हद पार करता है जब
उसका गर्दिश में ही फिर ठिकाना हुआ

ढूँढना नेकियाँ जिनकी फ़ितरत में है
उनका हँसना हँसाना खजाना हुआ

दुश्मनों से मुझे कुछ शिकायत नहीं
अब तो मै दोस्तों का निशाना हुआ

(यह गज़ल तरही मिसरा - "जब से गैरों के घर आना जाना हुआ" पर आधारित है ।)

3 comments:

  1. लाजवाब है गज़ल ... उम्दा शेरों का संकलन ...

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    1. बहुत शुक्रिया आदरणीय दिगंबर जी ।

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  2. मर्मस्पर्शी रचना

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