Friday, 27 June 2014

तरही गज़ल

दिल का हाल कैसा है चिट्ठियाँ समझती हैं
तुम भी लौट आओगे हिचकियाँ समझती हैं

कुछ तो कम नसीबी है और कुछ नादानी है    
हम जुदा हुये कैसे गलतियाँ समझती हैं

घर किया था हमने तो आपके हवाले ही
किसने घर जलाया है बस्तियां समझती हैं

बस दुआ ही लिखती है और कुछ नहीं कहती
माँ का हाल कैसा है चिट्ठियाँ समझती हैं

यूँ तो सब बराबर हैं बेटी हो या बेटे हों
किसको कितनी आज़ादी बेटियाँ समझती है

हम नहीं बिखर सकते इन हवा के झोंकों से
उंगलियों की ताकत को मुट्ठियाँ समझती हैं

हम भी हैं यहाँ तन्हा, तुम भी हो वहाँ तन्हा
अपनी अपनी मजबूरी दूरियाँ समझती हैं

तुम हमें नहीं कहते अपने दिल की बातों को
आँख में नमी है जो पुतलियाँ समझती हैं

सब नकाब ओढ़ें हैं अपनी अपनी फ़ितरत पर  

फूल कौन तोड़ेगा डालियाँ समझती हैं  

4 comments:

  1. वाह नादिर जी ... मज़ा आ गया इस दिलकश अंदाज़ का ...

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  2. बहुत शुक्रिया आदरणीय दिगंबर जी .......

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  3. तुम हमें नहीं कहते अपने दिल की बातों को
    आँख में नमी है जो पुतलियाँ समझती हैं
    ..वाह बहुत खूब!

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  4. बेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

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