Friday, 30 November 2012

मंज़िल अभी दूर है


तैयार किए गए
कुछ रोबोट
डाले गए
नफरत के प्रोग्राम
चार्ज किए गए
हैवानियत की बैटरी से
फिर भेज दिये  गए 
इंसानों की बस्ती में
फैलने आतंक

ये और बात है
इंसानियत ज़िंदा रही
हार गए हैवान
नहीं डरा सके हमें
न हीं कमज़ोर कर सके
हमारा आत्मविश्वास

और फिर
नष्ट कर दिया गया
आखिरी रोबोट भी
हम खुश ज़रूर हैं
पर जब तक जिंदा हैं
रोबोट बनाने वाले हाथ
इंसानियत के दुश्मन आज़ाद हैं
और हमारी मंज़िल
अभी दूर है

Saturday, 17 November 2012

गिरती दीवारें

गिरती दीवारें सूने खलिहान है
गावों की अब यही पहचान है

चौपालों में बैठक और हंसी ठट्ठे
छोटे छोटे से मेरे अरमान है

जनता के हाथ आया यही भाग्य है
आँखों में सपने और दिल परेशान है

लें मोती आप औरों के लिये कंकड़
वादे झूठे मिली खोखली शान है

हम निकले हैं सफर में दुआ साथ है
मंजिल है दूर रस्ता बियाबान है

Sunday, 11 November 2012

मेरा बेटा (2)


मेरा बेटा
अभी बच्चा है
अक़्ल से कच्चा है
चीज़ों का महत्व
नहीं जानता
और न ही
बड़ी बातें करना जानता है
उसकी खुशियाँ भी
छोटी-छोटी हैं  
चॉकलेट, खिलौनों से ख़ुश
पेट भर जाए तो ख़ुश
पर लालची नहीं है वो
उतना ही खाएगा
जितनी भूख़ है
कल के लिए नहीं सोचता
आज की फिक्र करता है
चीज़ें ज़्यादा हो जायें
दोस्तों में बाँट देगा
छोटा है न
कुछ समझता नहीं
लोग समझाते हैं
बाद के लिए रख लो
पर नहीं समझता
बुद्धू भी कहते हैं सब
पर सुनता नहीं किसी की
छोटा है न
कुछ समझता नहीं
कहेगा कल फिर आ जाएगी
ख़ुदा के बारे में
ज़्यादा कुछ नहीं जानता
पर अपने लिए उनसे
चीज़ें ज़रुर माँगता है
और विश्वास भी उसका पक्का है
ख़ुदा उसकी चीज़ों का   
प्रबंध कर देंगे
छोटा है न
विश्वास का पक्का है ।


Thursday, 8 November 2012

मेरा बेटा


मेरा बेटा
छोटा है
महज़ छ: साल का
मगर
खिलौने इकट्ठे करने में
माहिर है
और खिलौने भी क्या ?
दिवाली के बुझे हुये दिये
अलग-अलग किस्म की
पिचकारियाँ
हाँ कई रंग भी है
उसके मैंजिक बॉक्स में
लाल, हरे, पीले
मगर रंगों मे फर्क
नहीं जानता
बच्चा है न
नासमझ है
होली में
पूछेगा नहीं
आपको कौन सा रंग पसंद है
बस लगा देगा
बच्चा है न
नासमझ है
हरे और पीले का फर्क
अभी नहीं जानता
उसे तो ये भी नहीं पता
होली का रंग
सब में नहीं चढ़ता
और न ही
ईद की खुशियाँ
सबको भाती हैं
मैं उसका दुश्मन नहीं हूँ
शुभचिंतक हूँ
फिर भी चाहता हूँ
वो बच्चा ही बना रहे ।

Monday, 5 November 2012

दुख (हाईकु)


सूखती नदी
उजड़ते मकान
अपना गाँव

कैसा विकास
लोगों की भेड़ चाल
सुख न शांति

गाँवों में बसा  
नदियों वाला देश
पुरानी बात 

सूखती नदी
बढ़ता गंदा नाला
मेरा शहर 

बिका सम्मान
क्या खेत खलिहान
दुखी किसान 

लोग बेहाल
गिरवी जायदाद
कहाँ ठिकाना 

सड़े अनाज
जनता है लाचार
सोये सरकार