Thursday, 8 November 2012

मेरा बेटा


मेरा बेटा
छोटा है
महज़ छ: साल का
मगर
खिलौने इकट्ठे करने में
माहिर है
और खिलौने भी क्या ?
दिवाली के बुझे हुये दिये
अलग-अलग किस्म की
पिचकारियाँ
हाँ कई रंग भी है
उसके मैंजिक बॉक्स में
लाल, हरे, पीले
मगर रंगों मे फर्क
नहीं जानता
बच्चा है न
नासमझ है
होली में
पूछेगा नहीं
आपको कौन सा रंग पसंद है
बस लगा देगा
बच्चा है न
नासमझ है
हरे और पीले का फर्क
अभी नहीं जानता
उसे तो ये भी नहीं पता
होली का रंग
सब में नहीं चढ़ता
और न ही
ईद की खुशियाँ
सबको भाती हैं
मैं उसका दुश्मन नहीं हूँ
शुभचिंतक हूँ
फिर भी चाहता हूँ
वो बच्चा ही बना रहे ।

3 comments:

  1. बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,,,,,,
    बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति...

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    1. बहुत शुक्रिया आदरणीय मदन मोहन जी

      आभार ।

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  2. होली में झटपट मले, चेहरे पे मुस्कान |
    लाल हरे के भेद से, बच्चा है अनजान |
    बच्चा है अनजान, दिवाली दीप बटोरे |
    क्रिसमस ईद मनाय, खिलौने से भर झोले |
    रहता खुद में मस्त, सजाता रहे रंगोली |
    बच्चा बच्चा रहे, मनाये यूँ ही होली ||

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