Saturday, 17 November 2012

गिरती दीवारें

गिरती दीवारें सूने खलिहान है
गावों की अब यही पहचान है

चौपालों में बैठक और हंसी ठट्ठे
छोटे छोटे से मेरे अरमान है

जनता के हाथ आया यही भाग्य है
आँखों में सपने और दिल परेशान है

लें मोती आप औरों के लिये कंकड़
वादे झूठे मिली खोखली शान है

हम निकले हैं सफर में दुआ साथ है
मंजिल है दूर रस्ता बियाबान है

6 comments:

  1. उम्दा रचना भाई नादिर खान जी |

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    1. भाई जयकृष्ण जी ब्लॉग से जुड़ने,और कोममेंट्स देने के लिए बहुत धन्यवाद।
      बस छोटी सी कोशिश की है
      गज़ल लिखना सीख रहें हैं
      कृपया मार्ग दर्शन एवं कमेंट्स बनाये रखें ।

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    1. अज़ीज़ भाई अस्सलाम अलैकुम
      कोशिश को सराहा आपने
      बहुत शुक्रिया ।

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  3. बढ़िया रचना है

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    1. बहुत शुक्रिया वंदना जी ।

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