गिरती दीवारें सूने खलिहान है
गावों की अब यही पहचान है
चौपालों में बैठक और हंसी ठट्ठे
छोटे छोटे से मेरे अरमान है
जनता के हाथ आया यही भाग्य है
आँखों में सपने और दिल परेशान है
लें मोती आप औरों के लिये कंकड़
वादे झूठे मिली खोखली शान है
हम निकले हैं सफर में दुआ साथ है
मंजिल है दूर रस्ता बियाबान है
गावों की अब यही पहचान है
चौपालों में बैठक और हंसी ठट्ठे
छोटे छोटे से मेरे अरमान है
जनता के हाथ आया यही भाग्य है
आँखों में सपने और दिल परेशान है
लें मोती आप औरों के लिये कंकड़
वादे झूठे मिली खोखली शान है
हम निकले हैं सफर में दुआ साथ है
मंजिल है दूर रस्ता बियाबान है
उम्दा रचना भाई नादिर खान जी |
ReplyDeleteभाई जयकृष्ण जी ब्लॉग से जुड़ने,और कोममेंट्स देने के लिए बहुत धन्यवाद।
Deleteबस छोटी सी कोशिश की है
गज़ल लिखना सीख रहें हैं
कृपया मार्ग दर्शन एवं कमेंट्स बनाये रखें ।
behatreen
ReplyDeleteअज़ीज़ भाई अस्सलाम अलैकुम
Deleteकोशिश को सराहा आपने
बहुत शुक्रिया ।
बढ़िया रचना है
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया वंदना जी ।
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