जन्म पर बेटों के तो, बजता है नगाड़ा
बेटियों के नाम पर, आता है पसीना
हर बहू तो होती है, बेटी भी किसी की
रोती है,जब बेटी तो, फटता है कलेजा
नौकरानी हो कोई, या कोई सेठानी
हर किसी का लाल तो, होता है नगीना
खुद बनाता है महल, औरों के लिए जो
वो खुले मैदान पर, करता है गुज़ारा
खेतिहर का धान, सड़ जाता है खुले में
पेट की फिर आग में, जलता है बेचारा
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