Friday, 14 March 2014

क्षणिकाएँ

(एक)
तुम अक्सर कहते रहे
मत लिया करो
मेरी बातों को दिल पर
मज़ाक तो मज़ाक होता है
ये बातें जहाँ शुरू
वहीं ख़त्म ....
और एक दिन
मेरा छोटा सा मज़ाक
तार –तार कर गया
हमारे बरसों पुराने रिश्ते को
न जाने कैसे.........

   
 (दो)
घर की मालकिन ने
घर की नौकरानी को
सख्त लहजे में चेताया
आज महिला दिवस है
घर पर महिलाओं का प्रोग्राम है
कुछ गेस्ट भी आयेंगे
खबरदार !
जो कमरे से बाहर आई
टांगें तोड़ दूँगी........

4 comments:

  1. बहुत चुस्त .. व्यंग धार लिए ...
    होली कि बधाई ...

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  2. शुक्रिया आदरणीय दिगंबर जी ...........

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  3. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर..

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  4. वाह!बडी़ धारदार कलम है आपकी सर ।

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