किताबों में बहुत कुछ होता है, और भी बहुत कुछ हो सकता है। किताबों को सम्मान दें, अच्छी बातें लिखें प्यार और भाईचारा लिखें, किताबें नहीं चाहती उनके अंदर नफरतें लिखीं जाएँ । ................... "नादिर अहमद ख़ान"
सही कहा,,इन परिंदों को कौन बताए कि ये वो आकाश नही जो ये समझ के उड़ान भरी थी...|आप मेरे ब्लॉग पर आए इसके लिए आपका बहुत-बहुत आभार...| आगे भी हम यहीं उम्मीद करते हैं |सादर नमन |-मन्टू
सही कहा,,इन परिंदों को कौन बताए कि ये वो आकाश नही जो ये समझ के उड़ान भरी थी...|
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पर आए इसके लिए आपका बहुत-बहुत आभार...| आगे भी हम यहीं उम्मीद करते हैं |
सादर नमन |
-मन्टू