ज़िंदगी ने जो
दिया
जितना दिया
अच्छा दिया
ज़िंदगी को हमने
क्या दिया
इस बारे में
कभी सोचा ही
नहीं
ख़ुश होने के
मौसम
ज़िंदगी में
बहुत आये
पर हमें तो
गम तलाशने की
आदत है
कभी दूसरों की
खुशियों में
कभी अपनी
गलतियों पर
हम रोते
सिसकते रहे
सिर्फ़ अपने ही
बारे में
सोचते-सोचते
सब-कुछ
अपने लिए
बटोरने की चाह
लिए
अपनी और अपनों
की
सिफ़ारिशें
करते-करते
दूसरों के हक
कितने छीनें
कितने लूटे
जानने की कोशिश
कभी की भी नहीं
ख़ुद से आगे
निकल जाने की
चाह लिए
कहाँ-कहाँ गिरे
सोचा ही नहीं
ईश्वर को दोष
देते-देते
किस्मत का रोना
रोते-रोते
अपने गिरहबान
में झाँकने की
न तो फ़ुरसत है
और न ही हिम्मत
बस चले जा रहे
हैं
अंजाने सफ़र की
तलाश में
फिर दिखावे के
लिए
जितना चाहें
होंठ चौड़े कर
लें
दिल में पहाड़
सा बोझ लिए
हम ख़ुद को
बेवकूफ़ बना रहे हैं ।
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