Wednesday 19 September 2012

हमारी ज़िंदगी

ज़िंदगी ने जो दिया
जितना दिया
अच्छा दिया
ज़िंदगी को हमने
क्या दिया
इस बारे में
कभी सोचा ही नहीं

ख़ुश होने के मौसम
ज़िंदगी में बहुत आये
पर हमें तो
गम तलाशने की आदत है
कभी दूसरों की खुशियों में
कभी अपनी गलतियों पर
हम रोते
सिसकते रहे
सिर्फ़ अपने ही बारे में
सोचते-सोचते
सब-कुछ
अपने लिए
बटोरने की चाह लिए
अपनी और अपनों की
सिफ़ारिशें करते-करते
दूसरों के हक
कितने छीनें
कितने लूटे
जानने की कोशिश
कभी की भी नहीं
ख़ुद से आगे
निकल जाने की चाह लिए
कहाँ-कहाँ गिरे
सोचा ही नहीं

ईश्वर को दोष देते-देते
किस्मत का रोना रोते-रोते
अपने गिरहबान में झाँकने की
न तो फ़ुरसत है
और न ही हिम्मत
बस चले जा रहे हैं
अंजाने सफ़र की तलाश में
फिर दिखावे के लिए
जितना चाहें
होंठ चौड़े कर लें
दिल में पहाड़ सा बोझ लिए
हम ख़ुद को बेवकूफ़ बना रहे हैं ।

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