Monday, 17 September 2012

सरकारी अनाज

 (एक)
खामोश !
हर साल  की तरह
इस साल भी
अनाज सड़ रहा है।
अनुमान है
इस दफा
पिछला रेकॉर्ड भी टूटेगा

खबरदार !
किसी गरीब ने
आँख उठा कर  देखने की
जुर्रत भी की।
सरकारी अनाज है,
मतलब समझते हैं ,
पाँच-दस साल से
कम की सज़ा नहीं होगी
जो एक मुट्ठी भी
लेने की गुस्ताखी की |
 
    (दो)

चाय की चुस्कियों के बीच
सुस्ताते लम्हों में
पलटते हुये अख़बार के पन्नों के बीच
फिर वही सुर्खियाँ
बारिश में सड़ता
सरकारी अनाज
हर साल की तरह
इस साल भी

चाय के ख़त्म होते-होते
अख़बार के पन्नों के बीच
समस्याएँ दब जाती हैं
वर्ष बादल जाता है
सुर्खियाँ अब भी वही हैं  
हर साल की बारिश में।

 
  (तीन)

लोग भूखे मरें
तो अपनी बला से
दो दिन ज़्यादा जी लेंगे
तो कौन सा करोड़पति बन जायेंगे
या सरकारी नौकरियां पा लेंगे
उन्हें तो भटकना ही है
सड़कों और गलियों में
मरना ही है बाढ़ और सूखे से,
फिर सरकारी अनाज पर
बुरी नज़र डालें

खबरदार !
एक दाना भी चोरी जाने पाये
वजन और गिनती पूरी होनी चाहिए
कम हो
पत्थर कंकड़ मिला देना
और कोई माँगने आए
पुलीस में पकड़वा देना
पाँच-दस धरायें लगवाकर
दो-चार साल के लिए
अन्दर करवा देना
आखिर किसी की मजाल
सरकारी अनाज पर
बुरी नज़र डाले
लोग भूखे मरें
तो अपनी बाला से

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