Thursday, 20 September 2012

ज़िक्र

कभी-कभी सोचता हूँ
कुछ लिखूँ
अपनी ज़िंदगी के बारे में
मगर
छुपा लेना चाहता हूँ
उन पंक्तियों को
जिनमें
तुम्हारा ज़िक्र आता है
बस इसीलिये
कुछ भी नहीं लिख पाता
क्योंकि
हर पंक्तियों में
तुम्हारा
ज़िक्र आता है ।

4 comments:

  1. पहली बार आपके ब्लॉग पर आई
    और पहली ही पोस्ट
    एकदम मनभावन मिली..
    बहुत बढ़िया..
    बहुत सुन्दर रचना...
    :-)

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  2. बिना ज़िक्र के लिख नहीं सकते और उसका ज़िक्र कर नहीं सकते .... बहुत खूब

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    1. bahut shukriya for beautiful and unique comment.
      na maloom kuchh messages spam men kyon chale jate hai aaj he apka msg spam se recover kiya hai thats the reason for late repplying.

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