Thursday, 25 October 2012

मै शर्मिंदा हूँ



मनाना तो चाहता हूँ ईद

मगर बंद है
मेरे दिल के दरवाज़े
और ईद का चाँद
मुझे दिखाई नहीं पड़ता

दिवाली,दशहरा कैसे मनाऊँ
मेरे अन्दर का रावण
नहीं मरता मुझसे
और न ही
मेरे मन का अँधेरा छंटता है

बापू की जयंती है
पर मै
उनसे भी शर्मिंदा हूँ
मेरे अन्दर हिंसा है
लालच है
मै नहीं मिला पाता
अपनी नज़रें
उनकी तस्वीर से

जिन शहीदों ने

जान तक दे दी
हमारी आज़ादी के लिए
हमने उनका सब कुछ लूट लिया
और लूटा भी दिया

लोगों की
उदास बेचैन और लाचार आँखें
मुझे घूरती है
मै सबसे नज़रें चुराता हूँ
अपने आप को
कमरे में बंद कर लेना चाहता  हूँ
मुझमें हिम्मत नहीं
उनसे आँखें मिलने की
न ही हिम्मत है
ईद, दिवाली या जयंती मनाने की
क्योंकि मै शर्मिंदा हूँ

मैंने आज़ादी के अर्थ
ईद के पैगाम
और दिवाली के महत्व को
समझा ही नहीं ।

13 comments:

  1. बहुत ही बढिया अभिव्‍यक्ति ।

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    1. बहुत शुक्रिया आपके कमेंट्स हमेशा प्रेरणा देते है |

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  2. मैंने आज़ादी के अर्थ
    ईद के पैगाम
    और दिवाली के महत्व को
    समझा ही नहीं ।

    ...बहुत ही सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...

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    1. बहुत शुक्रिया आपका , विजिट करते रहें |

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  3. sach hai tyohar sirf bhoutik roop se nahi manane chahiye..inka arth sundar shabdon me samjhaya hai aapne..

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    1. बहुत शुक्रिया, कृपया विजिट करते रहें |

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  4. युधिष्ठिर बनना कहाँ आसान है .... लेकिन यह सोच आना भी आपकी संवेदनशीलता को दर्शाता है ।

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    1. शुक्रिया आपने कोशिश को सराहा

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  5. हमने उनका सब कुछ लूट लिया
    और लूटा भी दिया

    और लुटा भी दिया ......


    मुझमें हिम्मत नहीं
    उनसे आँखें मिलने की..... मिलाने

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  6. सुंदर अभिव्यक्ति ...

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  7. बहुत शुक्रिया सुमन जी|

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  8. बहुत शुक्रिया मदन मोहन जी अपने रचनाओं को पसंद किया और विचारों को सराहा बहुत आभार आपका कृपया मार्गदर्शन बनाये रखें |

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  9. संगीता जी बहुत आभार आपका स्नेह बनाये रखें |

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