मैं महाजन नहीं
हिसाब किताब रखूँ
प्यार में
क्या पाया 
क्या खोया 
जब कभी ख़ुदको
बेबस-असहाय
महसूस किया
ख़ुद पर भरोसा नहीं रहा
तुम्हारी ही यादें
हिम्मत बनकर खड़ी रहीं
मुझे टूटने नहीं दिया
वो तुम्हारी ही यादें हैं 
जो धूप में 
पेड़ की ठंडी छाँव
और सर्दी में 
गरम लिहाफ़
बन जाती हैं 
हर परेशानी में 
ढाल बनकर
खड़ी हो जाती हैं 
आँसुओं के गिरने से पहले
उन्हें थाम लेती हैं 
वो तुम्हारी ही  यादें हैं 
जो मौके-बेमौके
वजह-बेवजह गुदगुदाती हैं 
हँसा के निकल जाती हैं 
लोग सवाल करते हैं 
तुम बेवजह कैसे हंस लेते हो
तुम्हारी यादें मुस्कुराती हैं 
और पूछती हैं 
जनाब कहाँ खो गए ?
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