Tuesday, 30 October 2012

हमें जमे रहना है ।


मगरमच्छ
शिकार की तलाश में हैं
गिरगिट अपना रंग बदले
दबे पाँव जमे हैं
मकड़ियाँ जाल बुनने में
व्यस्त हैं ।
इन सबके बीच
फूलों को  फर्क नहीं पड़ता
वे पहले की तरह
अपनी ख़ूबसूरती
बिखेर रहे हैं
ख़ुशबू फैला रहे हैं
महकना
उनकी पहचान है
खुशियाँ  फैलाना
पैगाम है
फिर हम क्यों परेशान हैं
अपना धोर्य
खोते जा रहे हैं
अगर कुछ लोग
अपनी आदतें
नहीं छोड़ना चाहते
हम क्यों
अपनी पहचान खोएँ  
उन लोगों मे शामिल हो जाएँ  
जिन्हें हम ख़ुद
पसंद नहीं करते
ये तो सृष्टि का नियम है
सबके सब
अपने कामों में  
व्यस्त हैं
वे हैं, तो हम हैं
हम हैं, क्योंकि वे हैं
और हमें तो
जमे रहना है
मज़बूती के साथ
अधिक दृढ़ता से
ताकि वे
हावी न हो सकें
कमज़ोर पड़ जायें
बुराई डरती रहे
मिसालें कायम रहें
संतुलन बना रहे
धोर्य बरकरार रहे
बुराई हावी न हो सके
अच्छाई पर
सच की जीत जरूरी है
और हमें
जमें रहना है
और अधिक
दृढ़ता के साथ ।

4 comments:

  1. बहुत सुंदर संदेश देती रचना .... धैर्य का साथ न छोड़ कर बस जमे रहना है .....

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  2. बहुत शुक्रिया संगीता जी
    इसी तरह हौसला देते रहे
    और हमें लिखने की प्रेरणा मिलती रहे ।

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  3. सच की जीत जरूरी है
    और हमें
    जमें रहना है
    और अधिक
    दृढ़ता के साथ ।
    ...दृढ होकर अपने मुकाम तक पहुँच पाना संभव हो पाता है ......
    बहत बढ़िया सकारात्मक प्रस्तुति

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  4. बहुत शुक्रिया कविता जी |

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