Sunday, 16 December 2012

आओ वालमार्ट

आओ वालमार्ट 
स्वागत है आपका
अपनी कमज़ोर हो चुकी
अर्थव्यवस्था को
मज़बूत करने
आओ
हमारी मज़बूत होती
अर्थव्यवस्था को
कमज़ोर करने
आओ

हमने आपके हथियार नहीं लिए
इस नुक्सान की भरपायी के लिए
नयी संभावनाओं को तलाशने
आओ
किसानों के पसीने निचोड़ने
गरीब जनता का ख़ून चूसने
आओ वालमार्ट

यूनियन कार्बाइड की याद
धुंधली पड़ चुकी है
तुम नयी यादें देने आओ
हमारे अनाजों को
हमारी मेहनत को
अपनी शर्तों में
छीनने आओ
अपने चालाक पैतरों से
भोली-भाली जनता को
ठगने आओ
आओ वालमार्ट
अपने पैसे की ताकत दिखाओ

Friday, 30 November 2012

मंज़िल अभी दूर है


तैयार किए गए
कुछ रोबोट
डाले गए
नफरत के प्रोग्राम
चार्ज किए गए
हैवानियत की बैटरी से
फिर भेज दिये  गए 
इंसानों की बस्ती में
फैलने आतंक

ये और बात है
इंसानियत ज़िंदा रही
हार गए हैवान
नहीं डरा सके हमें
न हीं कमज़ोर कर सके
हमारा आत्मविश्वास

और फिर
नष्ट कर दिया गया
आखिरी रोबोट भी
हम खुश ज़रूर हैं
पर जब तक जिंदा हैं
रोबोट बनाने वाले हाथ
इंसानियत के दुश्मन आज़ाद हैं
और हमारी मंज़िल
अभी दूर है

Saturday, 17 November 2012

गिरती दीवारें

गिरती दीवारें सूने खलिहान है
गावों की अब यही पहचान है

चौपालों में बैठक और हंसी ठट्ठे
छोटे छोटे से मेरे अरमान है

जनता के हाथ आया यही भाग्य है
आँखों में सपने और दिल परेशान है

लें मोती आप औरों के लिये कंकड़
वादे झूठे मिली खोखली शान है

हम निकले हैं सफर में दुआ साथ है
मंजिल है दूर रस्ता बियाबान है

Sunday, 11 November 2012

मेरा बेटा (2)


मेरा बेटा
अभी बच्चा है
अक़्ल से कच्चा है
चीज़ों का महत्व
नहीं जानता
और न ही
बड़ी बातें करना जानता है
उसकी खुशियाँ भी
छोटी-छोटी हैं  
चॉकलेट, खिलौनों से ख़ुश
पेट भर जाए तो ख़ुश
पर लालची नहीं है वो
उतना ही खाएगा
जितनी भूख़ है
कल के लिए नहीं सोचता
आज की फिक्र करता है
चीज़ें ज़्यादा हो जायें
दोस्तों में बाँट देगा
छोटा है न
कुछ समझता नहीं
लोग समझाते हैं
बाद के लिए रख लो
पर नहीं समझता
बुद्धू भी कहते हैं सब
पर सुनता नहीं किसी की
छोटा है न
कुछ समझता नहीं
कहेगा कल फिर आ जाएगी
ख़ुदा के बारे में
ज़्यादा कुछ नहीं जानता
पर अपने लिए उनसे
चीज़ें ज़रुर माँगता है
और विश्वास भी उसका पक्का है
ख़ुदा उसकी चीज़ों का   
प्रबंध कर देंगे
छोटा है न
विश्वास का पक्का है ।


Thursday, 8 November 2012

मेरा बेटा


मेरा बेटा
छोटा है
महज़ छ: साल का
मगर
खिलौने इकट्ठे करने में
माहिर है
और खिलौने भी क्या ?
दिवाली के बुझे हुये दिये
अलग-अलग किस्म की
पिचकारियाँ
हाँ कई रंग भी है
उसके मैंजिक बॉक्स में
लाल, हरे, पीले
मगर रंगों मे फर्क
नहीं जानता
बच्चा है न
नासमझ है
होली में
पूछेगा नहीं
आपको कौन सा रंग पसंद है
बस लगा देगा
बच्चा है न
नासमझ है
हरे और पीले का फर्क
अभी नहीं जानता
उसे तो ये भी नहीं पता
होली का रंग
सब में नहीं चढ़ता
और न ही
ईद की खुशियाँ
सबको भाती हैं
मैं उसका दुश्मन नहीं हूँ
शुभचिंतक हूँ
फिर भी चाहता हूँ
वो बच्चा ही बना रहे ।

Monday, 5 November 2012

दुख (हाईकु)


सूखती नदी
उजड़ते मकान
अपना गाँव

कैसा विकास
लोगों की भेड़ चाल
सुख न शांति

गाँवों में बसा  
नदियों वाला देश
पुरानी बात 

सूखती नदी
बढ़ता गंदा नाला
मेरा शहर 

बिका सम्मान
क्या खेत खलिहान
दुखी किसान 

लोग बेहाल
गिरवी जायदाद
कहाँ ठिकाना 

सड़े अनाज
जनता है लाचार
सोये सरकार 

Tuesday, 30 October 2012

हमें जमे रहना है ।


मगरमच्छ
शिकार की तलाश में हैं
गिरगिट अपना रंग बदले
दबे पाँव जमे हैं
मकड़ियाँ जाल बुनने में
व्यस्त हैं ।
इन सबके बीच
फूलों को  फर्क नहीं पड़ता
वे पहले की तरह
अपनी ख़ूबसूरती
बिखेर रहे हैं
ख़ुशबू फैला रहे हैं
महकना
उनकी पहचान है
खुशियाँ  फैलाना
पैगाम है
फिर हम क्यों परेशान हैं
अपना धोर्य
खोते जा रहे हैं
अगर कुछ लोग
अपनी आदतें
नहीं छोड़ना चाहते
हम क्यों
अपनी पहचान खोएँ  
उन लोगों मे शामिल हो जाएँ  
जिन्हें हम ख़ुद
पसंद नहीं करते
ये तो सृष्टि का नियम है
सबके सब
अपने कामों में  
व्यस्त हैं
वे हैं, तो हम हैं
हम हैं, क्योंकि वे हैं
और हमें तो
जमे रहना है
मज़बूती के साथ
अधिक दृढ़ता से
ताकि वे
हावी न हो सकें
कमज़ोर पड़ जायें
बुराई डरती रहे
मिसालें कायम रहें
संतुलन बना रहे
धोर्य बरकरार रहे
बुराई हावी न हो सके
अच्छाई पर
सच की जीत जरूरी है
और हमें
जमें रहना है
और अधिक
दृढ़ता के साथ ।

जिम्मेदारियाँ (हाईकु)


जिम्मेदारियाँ
हो राज या समाज
धर्म निभाना

जिम्मेदारियाँ
खुद का आंकलन
जाँच परख

जिम्मेदारियाँ
जब भी हो चुनाव
खरा ही लेना

जिम्मेदारियाँ
धरती या आकाश
प्यार ही बाँटे

Thursday, 25 October 2012

मै शर्मिंदा हूँ



मनाना तो चाहता हूँ ईद

मगर बंद है
मेरे दिल के दरवाज़े
और ईद का चाँद
मुझे दिखाई नहीं पड़ता

दिवाली,दशहरा कैसे मनाऊँ
मेरे अन्दर का रावण
नहीं मरता मुझसे
और न ही
मेरे मन का अँधेरा छंटता है

बापू की जयंती है
पर मै
उनसे भी शर्मिंदा हूँ
मेरे अन्दर हिंसा है
लालच है
मै नहीं मिला पाता
अपनी नज़रें
उनकी तस्वीर से

जिन शहीदों ने

जान तक दे दी
हमारी आज़ादी के लिए
हमने उनका सब कुछ लूट लिया
और लूटा भी दिया

लोगों की
उदास बेचैन और लाचार आँखें
मुझे घूरती है
मै सबसे नज़रें चुराता हूँ
अपने आप को
कमरे में बंद कर लेना चाहता  हूँ
मुझमें हिम्मत नहीं
उनसे आँखें मिलने की
न ही हिम्मत है
ईद, दिवाली या जयंती मनाने की
क्योंकि मै शर्मिंदा हूँ

मैंने आज़ादी के अर्थ
ईद के पैगाम
और दिवाली के महत्व को
समझा ही नहीं ।

Thursday, 18 October 2012

क्षणिकाएँ


मै खुश हूँ 

तुम बार-बार
मुझसे
झूठ बोलते रहे
बोलते रहे
मै बारबार
तुम्हारी बात सुनता रहा
मानता रहा
तुम खुश हो
बार-बार बेवकूफ
मुझे  बना पाते हो
मै खुश हूँ 
क्योंकि
तुम खुश हो ।


 थोड़ा सा पानी


आप ज़रूर पीयें
आर.ओ. पानी
आपका स्वस्थ रहना
जरूरी है  
पर हमारे लिए भी छोड़ दें
थोड़ा सा पानी
हमारे जीने के लिए
जरूरी है
गाँवों की नदियों में
पानी का बचा रहना 

           (आर.ओ.-रिवर्स ऑस्मोसिस वाटर प्यूरिफायर)


क्या हुआ

क्या हुआ
अगर तुम्हें
तुम्हारे कुत्ते ने काट लिया
तुम्हें तो ख़ुश होना चाहिए
वह भी सीख गया है
तुम्हारी तरह
तुम्हारा व्यवहार
तुम्हारा अपनापन |



Tuesday, 16 October 2012

हाईकु


तुमने ओढ़ी
आसुओं की चादर
समाज खुश

ज़ख़्मों को धोना
मलहम लगाना
चलते जाना

सबकी खुशी
आँसुओं पे न जाना
फर्ज़ निभाना

पिया घर जा
आँसुओं को न देख
बावरे नैन

खुश रहना
कभी याद न आना
साथ निभाना 


सब खामोश
आँसू बहें हज़ार
सफर जारी 

Monday, 15 October 2012

नदियाँ


पहाड़ों से निकलती
इठलाती, बलखाती
झरनों में गिरती
मैदानों में मचलती
नदियाँ
शहरों तक आते आते
बन जाती हैं
गंदा नाला

पहाड़ों से निकलती
इठलाती,बलखाती
झरनों में गिरती
मैदानों में मचलती
नदियाँ का बूँद-बूँद
निचोड़ लिया जाता है
मानो वो नदियाँ नहीं
जागीर हो किसी की

पहाड़ों से निकलती
इठलाती, बलखाती
झरनों में गिरती
मैदानों में मचलती
नदियाँ  को
बांध दिया जाता है
बाँधों की जंजीरों से

पहाड़ों से निकलती
इठलाती,बलखाती
झरनों में गिरती
मैदानों में मचलती
नदियाँ
शहरों की बढ़ती ज़रूरतों को
पूरा करते-करते
सुप्त हो गई हैं
जिंदगी और मौत
की लड़ाई
लड़ रही हैं
मगर अंतिम साँसों तक
करती रहेंगी
सबकी ज़रूरतें पूरी
और सूखने के बाद भी
रेत और उर्वरा देकर जाएँगी
हमारे कल के लिए ।

Wednesday, 10 October 2012

गिरवी


मैं अपने हाथ
गिरवी रख आया हूँ
चंद सिक्कों के बदले
ख़ुद का
सौदा कर आया हूँ

मैं जानता हूँ
कुछ दिनों तक
पत्नी
नहीं देगी ताने
माँ
कुछ और दिन
जी लेगी
खिलौने बच्चों के लिए
कुछ दिन तक
ख़ुशी का सामान बनेंगे

सब ख़ुश हैं
और मैं
अपने ही हाथों से
लाचार हूँ
अपाहिज हो गया हूँ ।

Sunday, 7 October 2012

आम सभा


  (एक)

श श् श् श्...
सच बोलना मना है!
सरकारें  नशे में हैं  
खलल की सज़ा
जेल की सलाखें
या फिर
सजाये मौत
विकल्प आपका ।

    (दो)

नेता जी की आम-सभा
कृपया यहाँ
सवाल न पूछें
सिर्फ
उनकी सुनें
कुछ पूछने की गलती
न करें
नेता जी सत्ता के नशे में हैं
सवाल पूछना निषेध है ।

यादें

मैं महाजन नहीं
हिसाब किताब रखूँ
प्यार में
क्या पाया
क्या खोया

जब कभी ख़ुदको
बेबस-असहाय
महसूस किया
ख़ुद पर भरोसा नहीं रहा
तुम्हारी ही यादें
हिम्मत बनकर खड़ी रहीं
मुझे टूटने नहीं दिया

वो तुम्हारी ही यादें हैं
जो धूप में
पेड़ की ठंडी छाँव
और सर्दी में
गरम लिहाफ़
बन जाती हैं
हर परेशानी में
ढाल बनकर
खड़ी हो जाती हैं
आँसुओं के गिरने से पहले
उन्हें थाम लेती हैं

वो तुम्हारी ही  यादें हैं
जो मौके-बेमौके
वजह-बेवजह गुदगुदाती हैं
हँसा के निकल जाती हैं
लोग सवाल करते हैं
तुम बेवजह कैसे हंस लेते हो

तुम्हारी यादें मुस्कुराती हैं
और पूछती हैं
जनाब कहाँ खो गए ?